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Showing posts from November, 2020

CameRchives

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                 HiroshiManali.   aMaizeing.        Did u open the golden egg? - aquatic shot by             merpeople. God's Convertible. (So is religion) Step on me Daddy. break my spine if u wanna. Taylor Swift- Red ft. Kanye West? Full on steroids Fall. Lit - T चोखा          For  You   Cows.  Pinkity    Drinkity                           Pseudo Kimi No Nawa Cuz, I'm in a field of dandelions... Staircases to heaven            

The Joy of little things -by Anshika

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to Dive in or to Swim off

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 If life was an ocean, Would you dive in or swim off ?   There is misery  , pain , suffering as I dive deeper into this life. So much that I may suffocate, choke and maybe feel that if only I  had chosen the latter, things would have been simpler. BELIEVING   IGNORANCE COULD HAVE BEEN MY BLISS. But its not all about me and even though I am in pain. ITS WORTH IT to stick around deep in this ocean. Our story is pretty much written the same way. Life is everchanging but these stories are same. Crossing this ocean not looking deeper or even around just surviving and swimming. Ultimately meeting the death that awaits us. But we cannot allow the story to be written for us,  because we don't have forever. Sometimes all we have is a single day. People keep telling me "you only live once" but they are wrong. You live every day but only die once. But to die is to be human And anything human is mentionable Anything mentionable is manageable. Poetry, Beauty, ...

शौचालय (2013)

 आज जब रामविलास शर्मा की रचना ' धूल ' और काका कालेलकर का 'कीचड़ का काव्य पढ़ा' , तो मैंने भी सोचा की यदि अभी मुझे कुछ ऐसा लिखना हो, तो वो क्या होगा जिसे मैं मेरे लेख का विषय बना सकूं । मन में आया की एक सूची बनाऊं जिसमें ऐसी चीजें हो जिनसे घिन आए। इस सूची में सबसे अव्वल था ' शौचालय ' । इसका नाम सुनते ही ना जाने क्यूं शक्ल बदल जाती है। स्वयं ही छी निकल जाता है। कई लोगो को इसका नाम सुनते ही उल्टी आने लगती है किंतु वह उल्टी भी हम इसी शौचालय में करते हैं।  हम शौचालय अपने शरीर कि शुद्धि करने जाते हैं और जो आनन्द शौचालय से बाहर निकलने पर आता है, आहा! वह कितना आरामदायक और अमूल्य होता है। परंतु फिर भी इसे एक गंदे स्थान के तौर पर देखा जाता है। कई बार लगता है कि ये शौचालय ही तो है जो हमारा सचा मित्र है।  हम इससे रोज़ मिलते हैं, कई लोग सुबह और शाम मिलना पसंद करते और कई लोग कभी भी आ धमकते हैं। विद्यार्थी जीवन में तो शौचालय का स्थान अतुल्य है, यदि मां ने डांट दिया तो शौचालय जाओ और दरवाज़ा बन्द करलो। फिर चाहे बाहर दिवाली ही क्यूं न चल रही हो अंदर का वातावरण बिल्कुल शांत । यदि ...